बरसात

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बरसात का  था मौसम, लब भी  थे खामोश तप   रहे   थे   बदन, फड़क   रहे   थे   होंठ मासूम   से  चेहरे  पर, शबनम  की  बूंदें  थी कुछ उन्होंने  गलती की, कुछ हमारा था ...

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