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प्रतियोगिता हेतु गज़ल दिन रात अपनी जान , जलाता है जमाना। दो वक़्त की तब रोटियां, खाता है जमाना।। मंहगाई छीनने लगे , थाली की रोटियां। तेवर बदल के रोष , ...