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रे मन पौधा प्रेम का, अंसुवन से सींच बढ़ाए। फल जो लागे प्रीत का, बढ़े और कोई खा जाए।१। बावरा मन बूझत नाही, प्रेम के छल-प्रपंच, रंग लीजो मन आपनो, गिरगिट ...