कविता ःअंदाज

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कविता ः कविता ःअंदाज ★★★★★★★★ चाँद की सरगोशियां बढ़ने लगीं अंधेरे अब छुपने लगे नूरे-झुरमुट धरा को देख मचलने लगा छाया है आसमां के धरातल पर कभी घटकर कभी बढ़कर  अंदाज ...

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