मंज़िल

1 भाग

128 बार पढा गया

4 पसंद किया गया

मुक्तक-- मंज़िल पता नहीं है चलते ही जा रहे हैं| अंजान से सफ़र पर बढ़ते ही जा रहे हैं|| अब पूछते हैं रस्ते आखिर तलाश क्या है| बेवजह दर्शन के लिए ...

×