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मुक्तक-- मंज़िल पता नहीं है चलते ही जा रहे हैं| अंजान से सफ़र पर बढ़ते ही जा रहे हैं|| अब पूछते हैं रस्ते आखिर तलाश क्या है| बेवजह दर्शन के लिए ...