कविता ः कन्यादान

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कविता ःकन्यादान ★★★★★★★★★ बेटी तो है पराया धन जिसे जाना दूसरे घर है विवाह की ये रीत पुरानी वर के हाथों कन्या दान कर पिता अपने फर्ज निभाता बेटी, पिया की ...

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