दीप जलाओ

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दीप-शिखा" दीप-शिखा जलती रही, अंतर्मन पापी हो गया । सत्य के आवरण में , झूठ आज प्रतापी हो गया।। जय -घोष होने लगा , तिमिर का अब जहां में , रोशनी ...

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