कल्पना

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नमन मंच,  मेरी कलम से,        कल्पना ये कल्पनाएँ मन के द्वार  न दिन देखती न रात ।  बस चली आती वो मदमदाति खट्खटाती वो मन के द्वार ।।  ...

अध्याय

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