1 भाग
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कौन जानता कब सफर, बन जाए गमगीन। पल भर के ही खेल में, होवे मौत अधीन।। चलते-चलते यह सफर, कब हो जाता पूर्ण। जान सका है कब मनुज, जीवन मिट्टी चूर्ण।। ...