102 भाग
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*मां (मदिरा सवैया)* मां अति भावुक कोमल स्नेहिल,प्रमिल उर्मिल भाव भरा। मां करुणाकर सागर आखर, निर्मल पावन सौम्य धरा। शीतल सत्य शिवांग सुधामय ,सुंदर रूपसि नेह सरा। धन्य बनी रचती धरती ...