कविता ःःबंजर जमीन

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बंजर होती जा रही ये जमीन आसमां अब रो रहा भाई भाई का न रहा अब रिश्तों पर अब धूल चढ़े  हम संज्ञा शून्य हो रहे इंसानियत शर्मसार हो रही हम ...

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