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इस यज्ञ के द्वारा तुम देवताओं को संतुष्ट करो, पुष्ट और समुन्नत करो और वे देवता तुम्हें भी वैसा ही करें। (इस तरह) परस्पर एक दूसरे को सुखी-संपन्न बनाते हुए परम ...