1 भाग
292 बार पढा गया
8 पसंद किया गया
कविता ःःकुछ अधूरी ख्वाहिशें मेरी.... ००००००००००००००००००००००००० कुछ बनतीं कुछ बिगड़तीं सी कुछ ख्वाहिशें मेरी अधूरी सी... आसमान की ऊंचाइयों को छूने की चाह में रेत भी मुट्ठी से मेरी फिसलती चली ...