कविता ःःभीगी पलकें

1 भाग

115 बार पढा गया

4 पसंद किया गया

कविता ःभीगी पलकें ***************** पलकें हैं भीगी हुई ख्वाहिशों का समुंदर है अरमानों के सैलाब फिसलती रेतों सी उम्मीदें आज राख बनती जिंदगी है तपती मैं आकंठ.. भीगी पलकों से तेरी ...

×