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कविता ः अंतर्यामी ★★★★★★★★★ प्रभु तुम हो अंतर्यामी.. कालातीत, पारलौकिक, पारब्रह्म परमेश्वर... तुम्हारा न कोई किनारा तुम अथाह सागर जैसे नहीं चाह मैं मोती बन ,रहूं तुम्हारे अंदर प्रभु सद्गुणों से ...