कविता ःःअंतर्यामी

1 भाग

119 बार पढा गया

4 पसंद किया गया

कविता ः अंतर्यामी ★★★★★★★★★ प्रभु तुम हो अंतर्यामी.. कालातीत, पारलौकिक,  पारब्रह्म परमेश्वर... तुम्हारा न कोई किनारा तुम  अथाह सागर जैसे नहीं चाह मैं मोती बन ,रहूं तुम्हारे अंदर  प्रभु सद्गुणों से ...

×