स्वर्णमुखी छंद

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स्वर्णमुखी छंद रमता योगी बहता पानी। निर्मल बनकर चलना प्यारे। निर्गुण बन मिल जग से सारे। यही काम करता सद्ज्ञानी। एक जगह पर कभी न रह प्रिय। सतत टहलते  चलते रहना। ...

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