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स्वर्णमुखी छंद कोई नहीं पराया जग में, दो सब को सम्मान। भेदभाव को दफ़नाओ अब, चलो नेति के पास। सब को एक समझनेवाले, के अंतस में ज्ञान। देख रही है सारी ...