स्वर्णमुखी

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स्वर्णमुखी (सॉनेट) कर्मठ मानव सदा धनी बन,बढ़त अग्र की ओर। मस्तक पर है तेज, अर्थ पसीना बन कर बहता। सतत कर्म की पूजा करता, पकड़ कर्म की डोर। श्रम ही केवल ...

अध्याय

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